Sunday, December 26, 2010

तेरे लिए

लिखूंगा तेरे चाँद से चेहरे पर,
जरा नजरो को चेहरे पे टिकाने तो दे,
लिखूंगा तेरे दिल की गहराई पर,
जरा दिल में अपने उतर जाने तो दे,
रच दूंगा में भी बच्चन सी मधुशाला,
जरा नयनो के मयखाने में जाते तो दे,
रच दूंगा कालिदास सा मेघदूत,
जरा अपनी जुल्फों को लहराने तो दे.
............इन्दर पल सिंह "निडर"

Thursday, December 23, 2010

मेरा श्रंगार रस

माना के श्रंगार-रस के कवि 

मुझे भाते है,
पर मुंशी और निराला
गरीब की याद दिलाते है...
माना कि तेरी पायल की,
झंकार मुझे भाती है,
पर गरीब की तस्वीर,
घायल कर जाती है...
माना की खूबसूरत है
तेरी आंखे,
पर मुझे याद आती है
गरीब की खाली आतें....
जब भी तेरी जुल्फें,
काली घटा सी लहराती है...
मुझे गरीब की कुटिया के,
अँधेरे की याद दिलाती है,
लिखने बैठा
तेरी नागिन सी  चोटी पर,
लिख बैठा
गरीब की रोटी पर,
चाँद अब तेरे चेहरे की
नही याद दिलाता है,
वो तो गरीब की खाली थाली का
अहसास कराता है,
माना कि हमने मिल कर
कुछ इरादे किये थे,
सब भूल गया जैसे,
सरकार ने गरीब से वादे किये थे....
.......... इन्दर पल सिंह "निडर"

Sunday, December 19, 2010

मेरी कविता


सत्ता की चापलूसी मुझको नही आती,
हुस्न की अदाएँ मुझको नही भाती,
देश के हालात से हैरान हूँ मै,
दिल्ली की ख़ामोशी से परेशान हूँ मै,
नहीं लिखूंगा पायल की झंकारो पर,
मैं बरसूँगा सत्ता के गलियारों पर,
लिखूंगा मै सीमा के जवान पर,
लिखूंगा मै हिमगिरी की शान पर,
नहीं लिखूंगा शीला की जवानी पर,
नही लिखूंगा मुन्नी की बदनामी पर,
मैं लिखूंगा "राजा' की बेईमानी पर,
लिखूंगा घोटालो की कहानी पर,
लिखूंगा मनमोहन की नादानी पर,
नहीं लिखूंगा गड्ढे वाले गालों पर,
लिखूंगा में नित नये घोटालों पर,
नहीं लिखूंगा बोलीवुड की शान पर,
मैं लिखूंगा भूखे हिंदुस्तान पर,
कैसे लिखूँ, पारो का क्या जलवा है,

मेरे लिए तो पारो एक अबला है,
बच्चन सी मधुशाला नही लिख पाउँगा,
मैं तो भूखे पेट का गाना गाऊंगा,
मैं लिखूंगा ड्रेगन के इरादों पर,
मैं लिखूंगा ओबामा के वादों पर,
नही भूलूंगा सीमा पर जवान को,
नही भूलूंगा कारगिल में बलिदान को,
लिखूंगा मन्दिर मस्जिद के नारों पर,
लिखूंगा फसादों में चीत्कारों पर,
बरसूँगा मै धर्म के ठेकेदारों पर,
लिखूंगा में साबरमती की आग पर,
लिखूंगा मोदी के उन्माद पर,
लिखूंगा में रामलला बेचारे पर,
लिखूंगा में अपने भाईचारे पर,
मेरे शब्दों में मजलूम की आवाज हो,
मेरे अंदर गुरुओं का प्रकाश हो,

मेरे अंदर "मुंशी" सा फ़ोलाद हो ,
मेरी कविता में सरस्वती का वास हो.... 
..............इंद्र पाल सिंह"निडर"

Thursday, December 16, 2010

शहीद का पैगाम

तेरी छाती का दूध पिया माँ,
उसको नही भुलाया हे,
पर धरती हम सब की माँ हे,
इसका कर्ज़ चुकाया हे,
शत्रु ने ललकारा था माँ,
सबक सिखा कर आया हूँ,
क्या हुआ जिन्दा नही लोटा
अमर हो कर आया हूँ,
क्या हुआ जिन्दा............
माना की तू ब्याहता मेरी,
मुझे प्राणों से प्यारी थी,
पर मात्रभूमि की रक्षा करना,
मेरी जिम्मेदारी थी,
सुहाग चिन्ह हे तुम्हे प्यार,
पर शहीद  की विधवा का 
सम्मान दिला कर आया हूँ,
क्या हुआ जिन्दा..........
स्कुल छोड़ने नही जाता तुमको,
दिल से मत लगाना तुम,
एक शहीद के बेटे हो
सोच-सोच इतराना तुम
तिरंगा तुमको कितना प्यारा,
उसे उढ़कर आया हूँ,
क्या हुआ जिन्दा ..........
प्यारी गुडिया सी बहना को

डोली में नही  बिठा पाया,
रक्षा-बंधन पर दिया वचन 
माना नही निभा पाया,
पर मात्र-भूमि की रक्षा  का 
वचन निभा कर आया हूँ,
क्या हुआ जिन्दा.......
तेरी ऊँगली पकड कर बड़ा हुआ में
अब कन्धा मुझे लगा देना,
देश-भक्ति की कहानियाँ 
मेरे बच्चो को भी  सुना देना,
तुमसे सुनी जो शोर्य कथाएं,
उन्हें दोहराकर आया हूँ,
क्या हुआ जिन्दा .............
घायल होकर भी लड़ता रहा में,
सांसो ने दगा दिया क्या करता?
तिरंगा उसपर लहराना था,
शहीद हो गयाक्या  करता?
लहर-लहर लहराए तिरंगा,
इसे खून चड़ा कर आया हूँ,
क्या हुआ जिन्दा नही लोटा,
अमर हो कर आया हूँ,
क्या हुआ जिन्दा..........
..........इन्दर पाल सिंह 'निडर'

Saturday, December 11, 2010

मुन्नी बनाम शीला

लपको पर किस्मत मेहरबान हो गयी,
मुन्नी बेचारी बदनाम हो गयी,
मुन्नी के चर्चे तो खत्म  हुए नही 
कि अब ये शीला भी जवान हो गयी. 

Thursday, December 9, 2010

एक और विस्फोट

कभी मन्दिर,
कभी मस्जिद,
कभी गंगा-घाट पर 
बम फूट रहे हैं ,
पर देश के 
रहनुमाओं को क्या ?
वो तो दोनों हाथों से
देश को 
लूट रहें हें,
तीन हफ्ते से
संसद का काम, 
अटा हुआ है...
विपक्ष,
जेपीसी की मांग पर,
डटा हुआ है....
सरकार
जेपीसी से जाँच 
नही करवाएगी,
उधर येदुयेरप्पा पर
कितने ही दाग हो,
बीजेपी, नही हटाएगी-
नही हटाएगी
परवान हो  रही है,
महंगाई,
गरीब की बेटी की तरह 
जवान हो रही है ,
अमरीका की दादागिरी 
जारी है.....
एक बार फिर
मनमोहन को,
आजमाने की बारी है....
कुछ न कुछ 
तो करना होगा,
हम सबको 
'निडर"
बनना होगा
......इन्दर पाल सिंह,'निडर'

पैगाम

नहीं डरते हम किसी बम या गोली से,
नहीं डरते हम अंगारों की होली से,
विस्फोटो से हमे डरा न पाओगे,
हमारी एकता को तोड़ नहीं  पाओगे,
देश के गद्दारों को मेरा पैगाम हे,
सिंह का बेटा "निडर" मेरा उपनाम हे.

Tuesday, December 7, 2010

सरस्वती वंदना

वीणा-वादिनी तू हमे ऐसा वरदान दे,
विश्व गुरु बने भारत, हमे ऐसा ज्ञान दे,
वीणा-वादिनी तू हमे........
सुख-समृधि घर-घर हो,चहुँ ओर विकास हो,
जन-जन की आत्मा में, धर्म का प्रकाश हो,
खेत लहराते रहे,धन-धान्य भरपूर हो,
अभिमान,लोभ,लालच,स्वार्थ चूर-चूर हो,

मूर्खो का त्याग,बुद्धिमान को सम्मान दे,
वीणा-वादिनी तू हमे..........
मेरे देश की ये कैसी तस्वीर हो गयी,
संसद, चोर-लुटेरो की जागीर हो गयी,
जनसेवा के नाम पर सरकार बने बैठे हैं,
लूट-लूट देश को, मक्कार  बने बैठे हे,
जनसेवा कर्तव्य है ,इन्हें ऐसा ज्ञान दे...

वीणा-वादिनी तू हमे ऐसा वरदान दे..
द्रोपदी का चीर हरण गली-गली हो रहा है,
शासन धृतराष्ट्र बना, लम्बी तान सो रहा है,
लक्ष्मी असहाय,गीता मजलूम हो गयी है ,
सीता किसी वेश्यालय पे मशहूर हो गयी है ,
राम की सहायता को कोई हनुमान दे,
वीणा-वादिनी तू हमे.............
धरती के सीने से अनाज पैदा कर रहा है,
अन्नदाता कहलाता है ,फिर भी भूखा मर रहा है ,
बैल बिके,खेत बिका फिर भी सब्र कर रह है,
बीबी-बेटी की बारी आयी,आत्महत्या कर रहा है ,
खुशहाल रहे कृषक,ऐसा धन्य-धान दे,
वीणा-वादिनी तू हमे .....


नोजवान बेरोजगारों कि फोज बनता जा रहा हे,
देशद्रोहियों के साथ मिलकर देश को भुला रहा हे,
मुन्नी के दिवानो ने लक्ष्मीबाई को भुलाया हे,
गाँधी जी को   छोड़ गाँधी छाप अपनाया हे,
भगत सिंह को आदर्श माने,ऐसे नोजवान दे,
वीणा वादिनी .........
कलम गिरवी रखके पुरुस्कार पाए जाते हे,
ऐसे साहित्यकार तेरे उपासक कहलाते हे,
भूखे और दरिद्र कि कोई फ़िक्र नही करता हे,
अबला पर अत्याचारों का कोई जिक्र नही करता हे,
लाऊ नई क्रांति मेरी कलम में तू जान दे,
वीणा वादिनी ...........

..........इन्दर पाल सिंह 'निडर'

Saturday, December 4, 2010

आवाज़

पद की गरिमा भूल गये
दस जनपथ दुम हिलाते हो,
सिंहासन पर बैठे  हो सिंह
बकरी सा मिमियाते हो.
घर का खर्च चलाना मुश्किल
कम पड़ रही कमाई कियूं?
अर्थशास्त्री कहलाते हो
फिर बड़ रही महंगाई कियूं?
जनता बेचारी त्रस्त हो गयी,
कियूं नही काबू पाते हो?
सिंहासन पर बैठे हो सिंह........
घोटाले भी खेल हो गये
हर मंत्री एक खिलाडी हे,
इन सब के सरदार हो तुम
कांग्रेस कहे अनाड़ी हें,
भ्रष्टाचारी मंत्रियो को
घर कियूं नही बिठाते हो?
सिंहासन पर बैठे हो सिंह...........

विरह

परदेस गया मेरा बालम है,
मेरी तन्हाई का ये आलम है,
सावन की झिलमिल बरसाते,
या पूनम की शीतल रातें
मुझे तेरी याद दिलाते हैं,मुझे तेरी ....
सरसों खेतो में लहराने लगी,
यौवन पर वो इतराने लगी,
मदमस्त हवा संग वो पौधे,
जब खेतो में लहराते हैं,
मुझे तेरी याद दिलाते हे,
मुझे तेरी.......
मै क्या जानू सावन को?
मै तो बस जानू साजन को,
जब काले बादल गरज-गरज
धरती की प्यास बुझाते हैं,
मुझे तेरी याद दिलाते हे,
मुझे तेरी........
बागों में कलियाँ चहक उठी,
मदमस्त हवा भी महक उठी,
फूलों का यौवन तृप्त हुआ,
जब भवरें उनपर मंडराते हैं,
मुझे तेरी याद दिलाते हे,

मुझे तेरी.....

चंदा बादल की अठखेली,
जैसे प्रियतम संग अलबेली,
चन्दा भी हार कर जीत गया 
जब बादल उस पर छा जाते है,
मुझे तेरी याद..........

तुम संग देखे जो सपने,
जाने कब होंगे वो अपने,
आँखों में रोज संजोती हूँ,
आंसू बन कर बह जाते हैं,
मुझे तेरी याद दिलाते हैं,

मुझे तेरी याद......
.............इन्दर पाल सिंह 'निडर'