Tuesday, December 7, 2010

सरस्वती वंदना

वीणा-वादिनी तू हमे ऐसा वरदान दे,
विश्व गुरु बने भारत, हमे ऐसा ज्ञान दे,
वीणा-वादिनी तू हमे........
सुख-समृधि घर-घर हो,चहुँ ओर विकास हो,
जन-जन की आत्मा में, धर्म का प्रकाश हो,
खेत लहराते रहे,धन-धान्य भरपूर हो,
अभिमान,लोभ,लालच,स्वार्थ चूर-चूर हो,

मूर्खो का त्याग,बुद्धिमान को सम्मान दे,
वीणा-वादिनी तू हमे..........
मेरे देश की ये कैसी तस्वीर हो गयी,
संसद, चोर-लुटेरो की जागीर हो गयी,
जनसेवा के नाम पर सरकार बने बैठे हैं,
लूट-लूट देश को, मक्कार  बने बैठे हे,
जनसेवा कर्तव्य है ,इन्हें ऐसा ज्ञान दे...

वीणा-वादिनी तू हमे ऐसा वरदान दे..
द्रोपदी का चीर हरण गली-गली हो रहा है,
शासन धृतराष्ट्र बना, लम्बी तान सो रहा है,
लक्ष्मी असहाय,गीता मजलूम हो गयी है ,
सीता किसी वेश्यालय पे मशहूर हो गयी है ,
राम की सहायता को कोई हनुमान दे,
वीणा-वादिनी तू हमे.............
धरती के सीने से अनाज पैदा कर रहा है,
अन्नदाता कहलाता है ,फिर भी भूखा मर रहा है ,
बैल बिके,खेत बिका फिर भी सब्र कर रह है,
बीबी-बेटी की बारी आयी,आत्महत्या कर रहा है ,
खुशहाल रहे कृषक,ऐसा धन्य-धान दे,
वीणा-वादिनी तू हमे .....


नोजवान बेरोजगारों कि फोज बनता जा रहा हे,
देशद्रोहियों के साथ मिलकर देश को भुला रहा हे,
मुन्नी के दिवानो ने लक्ष्मीबाई को भुलाया हे,
गाँधी जी को   छोड़ गाँधी छाप अपनाया हे,
भगत सिंह को आदर्श माने,ऐसे नोजवान दे,
वीणा वादिनी .........
कलम गिरवी रखके पुरुस्कार पाए जाते हे,
ऐसे साहित्यकार तेरे उपासक कहलाते हे,
भूखे और दरिद्र कि कोई फ़िक्र नही करता हे,
अबला पर अत्याचारों का कोई जिक्र नही करता हे,
लाऊ नई क्रांति मेरी कलम में तू जान दे,
वीणा वादिनी ...........

..........इन्दर पाल सिंह 'निडर'

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