Saturday, December 4, 2010

आवाज़

पद की गरिमा भूल गये
दस जनपथ दुम हिलाते हो,
सिंहासन पर बैठे  हो सिंह
बकरी सा मिमियाते हो.
घर का खर्च चलाना मुश्किल
कम पड़ रही कमाई कियूं?
अर्थशास्त्री कहलाते हो
फिर बड़ रही महंगाई कियूं?
जनता बेचारी त्रस्त हो गयी,
कियूं नही काबू पाते हो?
सिंहासन पर बैठे हो सिंह........
घोटाले भी खेल हो गये
हर मंत्री एक खिलाडी हे,
इन सब के सरदार हो तुम
कांग्रेस कहे अनाड़ी हें,
भ्रष्टाचारी मंत्रियो को
घर कियूं नही बिठाते हो?
सिंहासन पर बैठे हो सिंह...........

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