Sunday, December 26, 2010

तेरे लिए

लिखूंगा तेरे चाँद से चेहरे पर,
जरा नजरो को चेहरे पे टिकाने तो दे,
लिखूंगा तेरे दिल की गहराई पर,
जरा दिल में अपने उतर जाने तो दे,
रच दूंगा में भी बच्चन सी मधुशाला,
जरा नयनो के मयखाने में जाते तो दे,
रच दूंगा कालिदास सा मेघदूत,
जरा अपनी जुल्फों को लहराने तो दे.
............इन्दर पल सिंह "निडर"

2 comments:

  1. मित्रो अपनी पूर्व रचना में बताया था कि किस प्रकार
    हमने श्रीमती जी को उनके उपर कुछ लिखने से
    मना कर दिया था.
    लेकिन जनाब आप लोग समझते हो कि "निडरता" दिखाने
    के लिए हर जगह माकूल नही होती.सो अर्ज़ किया है.........

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  2. वाह!वाह!! क्या गजब लिखा है, इंदरपाल सिंह जी.....
    अति उमदा....!!!..

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